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बीकानेर के गोपेश्वर बस्ती में स्थित माली समाज भवन में चल रहे कथा सत्र में आज सप्तम दिन की कथा करते हुए विख्यात भागवताचार्य श्री मुरली मनोहर व्यास ने भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए, भगवान कृष्ण द्वारा गोपिकाओं के वस्त्रहरण का प्रसंग का वर्णन किया जल में वरुण देव का वास माना जाता है अतः स्नान करते समय मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। पीठाधीश व्यास ने रासलीला का महत्व प्रकट करते हुए बताया जहाँ रस की प्राप्ति हो वह रास हैं। साहित्य मे रस की परिभाषा यह दी गई है

वाक्यं रसात्मक काव्यम् । रस वह है जो मनुष्य के सुप्त भावों को जागृत कर दै। इसी क्रम में श्री व्यास ने कथाक्रम को आगे बढ़ाते हुए – भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत की धारण करना, भगवान श्री कृष्ण का मथुरा
आगमन, बलराम और कृष्ण का द्वारका आगमन बलराम का विवाह, भगवान श्री कृष्ण के प्रति रुक्मिणी का सन्देश प्रखित करना, भगवान श्रीकृष्ण का कुण्डिनपुर में जाकर रुक्मिणी का हरण करना, राजाओं को शान्त करके भगवान श्री कृष्ण के साथ रुक्मिणी का विवाह इसके अतिरिक्त कृष्ण की अन्य लीलाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन किया

द्वितीय सत्र की कथा में श्री मुरली मनोहर जी गोपी- – गीत के महत्व को बताते हुए गापियों की विरह व्यथा का वर्णन किया। महाराज श्री ने अधरा की व्याख्या करते हुए बताया अधर का अर्थ है जो इस घरा का न होकर अलौकिक रस है उसे अधर रस कहते है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से इसी रस का पान करवाने का आग्रह करती है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए व्यास जी ने यमुना किनारे कृष्ण- कृत रासलीला का भावपूर्ण वर्णन किया। रास भजन को सुनकर मण्डप में स्थित श्रोतागण उन्मत होकर नृत्य करने लगे। व्यासपीठ के समीपस्थ मंच पर रासलीला की संजीव झांकी का द्रस्य किया गया जिसे देखकर श्रोता आनन्द से गद्‌गद हो गये। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कथा में कंस आए माया रचकर अक्रूर जी के माध्यम से बलराम और कृष्ण को मथुरा बुलाने का वर्णन विस्तार से किया गया। उसके बाद भगवान कृष्ण मथुरा में आते है कंस का वध करते है। इन सभी प्रसंगो का सजीव वर्णन श्री मुरली मनोहर व्यास जी द्वारा किया गया।

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