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बीकानेर,इस तरफ बचाव दल। बीच में 200 मीटर से ज्यादा पसरा हुआ पानी। कितना गहरा, अनुमान लगाना मुश्किल। दूसरी तरफ घरों में लोग। स्कूल में 15 से ज्यादा बच्चे और महिलाएं। मशीनों और बचाव दल का लंबा इंतजार। एक-एक पल भारी पड़ रहा। नगर निगम के उपायुक्त राजेन्द्रसिंह बोले, ट्रैक्टर से जाकर बच्चों को ला सकते हैं क्या? किसी चेहरे पर ‘हां‘ जवाब नहीं दिखा। एक ड्राइवर ने कहा, जा सकता हूं, साथ कौन चलेगा? फिर इधर-उधर देखा गया। खुद उपायुक्त बोले-चलो! हमें जाना ही होगा। बच्चे फंसे हैं। कोई अनहोनी हो गई तो क्या हम खुद को माफ कर पाएंगे। ट्रैक्टर पर चढ़े ओर ड्राइवर के साथ सीट पर बैठे। ट्रॉली में एक-दो बचावकर्मी भी हिम्मत जुटाकर सवार हो गए, चल दिए।

उधर फंसे हुए लोग इस ट्रैक्टर को उम्मीद भरी नजरों से देख रहे थे। इस किनारे बचाव के लिए आए और तमाशबीन लोगों के होठों पर एक ही मन्नत, सब कुछ सकुशल हो। पानी के बीच पहुंचते-पहुंचते एकबारगी दोनों तरफ से हल्ला हो गया। ट्रैक्टर आधे से ज्यादा डूब गया। एक तरफ झुक गया। पलटने ही वाला था। खुद उपायुक्त ने स्टीयरिंग थाम एक ओर किया। धीरे-धीरे ट्रेक्टर पानी के दूसरे छोर पर पहुंच गया जहां लोग फंसे थे। सबसे पहले बच्चों को स्कूल से निकाला ट्रैक्टर में बिठाया। शिक्षिकाओं को बिठाया। आस-पास के घरों में फंसे कुछ लोगों को लिया। सबको हिदायतें दी, कैसे रहना है, कहीं गिर जाएं तो बच्चो को कंधों पर उठाकर खड़े होना है आदि।

फिर वही वापसी का सफर। धीरे-धीरे पानी से निकलते हुए किनारे की ओर बढ़े। जाते हुए रास्ते का अनुमान हो गया था कि ज्यादा पानी कहा है, गड्ढे किधर है। बस, जैसे-तैसे पूरा पानी कर बाहर आए और जयकारे गूंज उठे।
यह एक ऑफिसर की सरकारी ड्यूटी का नहीं इंसानियत का चेहरा था, जिसे मौके पर सब सलाम कर रहे थे। दूसरी ओर ये ऑफिसर उन बच्चो के चेहरों पर देख रहा था जहां अब विपत्ति से निकलकर आने के बाद छाई मुसकुराहट थी।

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