बीकानेर,रांगड़ी चौक के बड़ा उपासरा में शनिवार को श्रीपूज्यजी के सान्निध्य में यतिश्री अमृत सुन्दरजी, सुमति सुन्दरजी व यतिनि समकित प्रभाश्री ने नवंकार महामंत्र की महिमा बताई। उन्होंने कहा कि जैनधर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण व सर्व कल्याणकारी ’’ णमोकार महामंत्र’’ है।
इस महामंत्र को नवंकार मंत्र, नमस्कार मंत्र या पंच परमेष्ठि नमस्कार’’ भी कहा जाता है। इस मंत्र में अरिहंतों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों और साधुओं को भावपूर्ण वंदना के साथ नमस्कार किया गया है। प्रवचन स्थल पर जैन पब्लिक स्कूल के 11वीं के छात्र वीरेन्द्र पूगलिया पुत्र राजवीर पूगलिया के आठ दिन की तपस्या की अनुमोदना कर आशीर्वाद दिया गया। ज्ञान वाटिका के बच्चों ने दोपहर को यतिवृंद व यतिनि से धार्मिक शिक्षा प्राप्त की सुबह,दोपहर व शाम को अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने सत्य साधना का अभ्यास किया।
नवंकार महामंत्र लोकोत्तर मंत्र है। इस मंत्र में जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र माना जाता है। इसमें किसी व्यक्ति का नहीं, किन्तु सम्पूर्ण रूप् से विकसित और विकासमान विशुद्ध आत्मस्वरूप का दर्शन, स्मरण,चिंतन, ध्यान एवं अनुभव किया जाता है। यह अनादि और अक्षयस्वरूपी मंत्र है। लौकिक मंत्र आदि सिर्फ लौकिक लाभ पहुंचाते है, किन्तु लोकोत्तर मंत्र इस लौकिक एवं लोकोत्तर दोनों कार्य सिद्ध करते है। इसे सर्वकार्य सिद्धकारक लोकोत्तर मंत्र माना गया है।
उन्होंने कहा कि ये पंच परमेष्ठि मंत्र सब पापों का नाश करने वाला संसार में सबसे उत्तम मंगल है। इस मंत्र के प्रथम पांच पदों में 35 अक्षर और शेष दो पदों में 33 अक्षर है। इस तरह 68 अक्षरों का यह महामंत्र समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला व कल्याणकारी अनादि सिद्ध मंत्र है। इसकी साधना, आराधना व जाप करने वाले को स्वर्ग व मुक्ति का मार्ग मिलता है। सर्वकार्य सिद्धिकारक इस मंत्र में अरिहंतों,सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों व साधुओं को भाव भक्ति के साथ वंदन किया गया है। नवंकार महामंत्र के आदर्शों को जीवन में उतारना है। राग-द्वेष तथा सत्य साधना के माध्यम से पापों से मुक्त बनना है। परमात्मा हमें देखता है के भाव रखते हुए पापों से बचना है। समता, विनम्रता, अहिंसा को धारण करना है। आचार्य, सुदेव, सुगुरु व सुधर्म के माध्यम से शाश्वत धर्म को अंगीकार करना है।