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बीकानेर/ राजस्थानी के महत्त्वपूर्ण कवि डॉ.अर्जुन देव चारण की कविताओं को अनुवाद के माध्यम से हिंदी के समृद्ध पाठक वर्ग तक पहुंचाने का डॉ. नीरज दइया ने सराहनीय कार्य किया है। अनुवाद दो भाषाओं के मध्य सेतु का कार्य करता है, यह प्रक्रिया निरंतर गतिशील रहनी चाहिए।
प्रतिष्ठित कवि-चिंतक डॉ. नंदकिशोर आचार्य ने ये उद्गार सुपरिचित कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया द्वारा डॉ. अर्जुन देव चारण के राजस्थानी काव्य संग्रह अगनसिनान’ के हिंदी अनुवाद-कृति के लोकार्पण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए।
डॉ. आचार्य ने कहा कि साहित्यिक रूप से राजस्थानी को मान्यता मिली हुई है। साहित्य अकादमी प्रतिवर्ष राजस्थानी कृतियों को पुरस्कृत करती रही है किंतु संवैधानिक मान्यता के लिए राजस्थानी साहित्यकार वर्षों से संघर्षरत हैं। उन्होंने कहा कि कविता, कहानी आदि साहित्यिक विधाओं में निरंतर सृजन करने के साथ-साथ राजस्थानी लेखकों को विज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, आर्थिकशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर भी मौलिक लेखन करना चाहिए तथा अनुवाद के माध्यम से भी इन विषयों की पुस्तकें राजस्थानी पाठकों तक पहुंचाने के प्रयास करने चाहिए।
नेगचार संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि सरल विशारद ने कहा डॉ. नीरज दइया प्रतिभाशाली साहित्यकार हैं जो मौलिक लेखन के साथ-साथ अनुवाद कार्यों को भी गंभीरतापूर्वक करते रहे हैं। आपने नंदकिशोर जी की कविताओं का हिंदी में राजस्थानी में अनुवाद किया है जो एक बहुत बड़ा कार्य है इसी प्रकार अर्जुन देव चारण की कविताओं का हिंदी में आना एक बड़ा कार्य है।
विशिष्ट अतिथि पंडित जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष बुलाकी शर्मा ने कहा कि डॉ नीरज दइया वर्षों से अनुवाद कार्य में संलग्न हैं। उन्होंने राजस्थानी और हिंदी में परस्पर अनुवाद से देश में जहां राजस्थानी साहित्य को दूर दूर तक पहुंचाया है वहीं भारतीय साहित्य को राजस्थानी में लाकर अनुवाद को सृजनात्मकता के अनेक आयाम प्रस्तुत किए हैं। अगनसिनान की लंबी कविताएं हिंदी के माध्यम से अन्य भारतीय भाषाओं में जाएगी तब निसंदेह यह प्रमाणित होगा कि राजस्थानी में श्रेष्ठतम साहित्य सृजन हो रहा है।
डॉ नीरज दइया ने अनुवाद-कार्य के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि इस संग्रह में डॉ. अर्जुन देव चारण की पौराणिक और ऐतिहासिक स्त्री चरित्रों के मनोभावों को लेकर सृजित लंबी कविताएं हैं। इनका अनुवाद करते यूं लगता रहा जैसे ये स्त्री चरित्र साक्षात उपस्थित होकर अपनी व्यथा-कथा बता रहीं हैं। ये कविताएं हिंदी पाठकों को निःसंदेह गहरे तक संवेदित और उद्वेलित करेंगी।
युवा आलोचक डॉ ब्रज रतन जोशी ने कहा कि डॉ. अर्जुन देव चारण को प्रमुखत एक नाटककार के रूप में जाना-पहचाना जाता है किंतु वे बड़े कवि और आलोचक के साथ चिंतक के रूप में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। अगनसिनान की कविताएं उनके कवि रूप को दूर दूर तक ले जाने में सहयोग कर राजस्थानी कविता की कीर्ति में श्रीवृद्धि करेगी। आभार प्रदर्शन सूर्यप्रकाशन मंदिर के निदेशक डॉ प्रशांत बिस्सा ने व्यक्त किया।

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