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बीकानेर,पुनरुत्थान विद्यापीठ विगत १८ वर्षों से शिक्षा का शत-प्रतिशत भारतीय प्रतिमान प्रस्थापित हो इस हेतु कार्य कर रहा है। इन १८ वर्षों के कार्यकाल में विद्यापीठ ने अध्ययन, अनुसंधान , पाठ्यक्रम निर्माण, संदर्भ सामग्री निर्माण तथा शिक्षकों और अभिभावकों के प्रशिक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। यह जानकारी पुनरुत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद की कुलपति इंदुमती काटदरे ने बुधवार को रिद्धी सिद्धी पैलेस में आयोजित प्रेसवार्ता में दी।इंदुमती काटवरे ने कहा कि पुनरुत्थान विद्यापीठ संस्था ने गहन चिंतन और शोध के बाद 1051 ग्रंथों की रचना की है, जिसकी जानकारी पहले देश के आमजन के बीच दी जाएगी।पुनरुत्थान विद्यापीठ की प्रमुख इंदुमति काटदरे ने कहा कि इन ग्रंथों को शिक्षा के लिए इस तरह तैयार किया गया है, जिसमें विद्यालय, घर और मंदिर सबकी भूमिका समाहित है और 21वीं शताब्दी में भारतीय शिक्षा पद्धति कैसी हो? शोध करके उसे प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने दावा किया कि विगत डेढ़ सौ से 200 साल के अंदर भारत की शिक्षा व्यवस्था विकृत की गई। इससे पहले हजारों वर्ष तक भारतवासी शिक्षित थे। भले उन्हें लिखना-पढ़ना ना आता हो, किंतु शिक्षा का व्यावहारिक ज्ञान प्रचुर मात्रा में था। विद्यापीठ ने पौने चार साल में 1051 ग्रंथों का निर्माण और प्रकाशन किया है। यह ग्रंथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत भारतीय ज्ञान संपदा विभाग से सुसंगत हैं। यह सभी ग्रंथ विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में स्थान प्राप्त करें ऐसा भी हमारा प्रयास होगा।उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति तो बन गई है, किंतु पाठ्यक्रम की रचना हो रही है। पाठ्यक्रम में बड़े परिवर्तन की बात की जा सकती है। उन्होंने बताया कि इस कार्य में २५ राज्यों के ३६० लेखकों ने भागीदारी की, इन ग्रंथों का लेखन सेवा सभी लेखकों ने नि:शुल्क की है। वार्ता में उन्होंने ४ प्रकार के ग्रंथों की जानकारी भी साझा की, साथ ही बताया कि भारत की भारतीय शिक्षा की प्रतिष्ठा विद्वजनों और सामान्यजनों की कृति, वाणी, मन, बुद्धी और हद्धय में हो यह पुनरुत्थान चाहता है। उन्होंने बताया कि पुनरुत्थान विद्यापीठ एक ऐसी शिक्षा संस्था है जो भारतीय संस्कृति के आधार पर शिक्षा की पुनर्रचना चाहती है। पुनरुत्थान विद्यापीठ की योजना पर प्रकाश डालते हुए इंदुमती काटदरे ने बताया कि ग्रंथों की रचना पर विद्यापीठ २००४ से काम कर रहा है। भारतीय शिक्षा कक्षा कक्षों में, पाठ्य पुस्तकों के रूप में, पाठ्य सामग्री के रूप में, संदर्भ और साइंस के रूप में हो इसलिए इन ग्रंथों की आवश्यकता पड़ी इसलिए १०५१ ग्रंथों के निर्माण की आवश्यकता पड़ी। इन सभी ग्रंथों का केन्द्र वस्तु विषय भारत है। भारत की जीवनवृति, इतिहास, जीवन शैली, शास्त्र सम्पदा, ज्ञान सम्पदा यह केन्द्र वस्तु है। इस अवसर पर उन्होंने विद्यापीठ की ओर से आयोजित होने वाली भारतीय शिक्षा- दशा और दिशा पर होने वाली गोष्ठी एवं १०५१ ग्रंथों के लोकार्पण कार्यक्रम की जानकारी से अवगत कराया।इस मौके पर मधुसूदन व्यास व संयोजक केसरी चंद पुरोहित भी उपस्थित रहे।

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