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बीकानेर, तकनीकी विश्वविद्यालय के संघठक महाविद्यालय यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद द्वारा प्रायोजित पांच दिवसीय अटल फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का शुभारंभ *प्रो.विनोद कुमार सिंह कुलपति, महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय,बीकानेर* दुवारा किया गया। जनसंपर्क अधिकारी विक्रम राठौड़ ने बताया कि बतौर मुख्य अतिथि प्रो. सिंह ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में शहरीकरण बढ़ रहा है, बढ़ती मानवीय आवश्यकताओं ने पर्यावरण एवं प्राकृतिक रिसोर्सेज को हानि पहुचाई हैं। हमारा मानव समाज ही प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं परंपरागत रहन-सहन भूलते जा रहे हैं।अपना जीवन यापन ऐसा बना लिया है कि स्वयं को तथा प्रकृति को अस्वस्थ बना रहे हैं वृक्षों की कटाई होती जा रही है जिससे क्लाइमेट चेंज हो रहा है अतः हमें ऐसी हमें इसका हल ढूंढना होगा जो प्रकृति को पोषित करें।एक तरफ तकनीकों के नए आयामों को हम छू रहे है तो दूसरी तरफ पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे है अतः आवश्यकता है की ऐसी ग्रीन और क्लीन तकनीकों को अपनाया जाए जो पर्यावरण को सुरक्षित रखें और इसके साथ प्रकृति के नुकसान की भरपाई भी की जा सके। हमारे देश में ऊर्जा के स्रोतों का भंडार है अतः उन्ही को अपनाकर नए अपरंपरागत स्त्रोतो को विकसित करने का प्रयास करना होगा।

*अध्यक्षीय उद्बोधन में बीकानेर तकनीकी विश्विद्यालय के कुलपति प्रो.अम्बरीष शरण विद्यार्थी* ने कहा कि कई मामलों में, प्रौद्योगिकी और परियोजनाएं पर्यावरणीय हितों के साथ बाधा भी पैदा करती हैं। प्रौद्योगिकी और नवाचार की बढ़ती गति कोभमे पर्यावरणीय संरक्षण के मुद्दों के साथ भी देखना होगा।परंपरागत ऊर्जा उत्पादन को ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण माना जा सकता है। वैश्विक समस्या का रूप ले चुकी ग्लोबल वार्मिंग पर अंकुश लगाने में ग्रीन टेक्नोलॉजी काफी कारगर साबित हुई है। ऊर्जा संकट से जूझ रहे भारत जैसे देश के लिए ग्रीन टेक्नोलॉजी बेहतर विकल्प के तौर पर उभर सकती है। बताया कि विकसित देशों में परमाणु ऊर्जा उनकी जरूरतों को पूरा करने का बड़ा माध्यम है, जबकि भारत अभी इस क्षेत्र में काफी पीछे है। इसके साथ ही यूरोपीय देशों में ग्रीन टेक्नोलॉजी के जरिए भी इस्तेमाल होने वाली कुल ऊर्जा का औसतन छह से सात फीसदी हिस्सा उत्पादित होता है। जर्मनी जैसे देश में कुल मांग का 10 तो इटली में 5.4 फीसदी ग्रीन टेक्नोलॉजी से पूरा होता है। भारत में अभी कुल ऊर्जा जरूरत का 0.5 फीसदी उत्पादन ही ग्रीन टेक्नोलॉजी के जरिए होता है। बायोमास, हवा, पानी और सूर्य की रोशनी का इस्तेमाल करके ऊर्जा उत्पादन से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को काफी कम किया जा सकता है। इससे न सिर्फ ऊर्जा संकट से देश को उबारा जा सकता है बल्कि प्रदूषण को भी काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

संचालिका डॉ.अनु शर्मा ने बताया कि यह एफडीपी रीसेंट ट्रेंड्स इन ग्रीन टेक्नोलॉजी फार सस्टेनेबल डेवलपमेंट विषय पर हैं। वर्तमान को देखे तो हम यह पाते है कि हम परंपरागत स्त्रोतों को समाप्त कर रहे है और पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य ऐसी नईं तकनीकों को इजाद करना है जो पर्यावरण फ्रैंडली हो। इस कार्यक्रम में नैनो एडसोरबेंट वेस्ट मैनेजमेंट तकनीक, ग्रीन एनर्जी प्रोडक्शन तकनीक एनर्जी फ्रोम बायोमास ,बायोमैटिरियल यूज इन मेडिकल फील्ड आदि की जानकारी मिलेगी। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र भूमिका चोपड़ा संचालिका ने संभाला| तकनीकी मिस्टर राजेश सुथार ने संभाला।डॉ.गायत्री शर्मा ने इस एफडीपी के आगामी आयामों के बारे में बताया डॉ शिखा ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया

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