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बीकानेर,राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति को समर्पित संस्था ‘उजास’ द्वारा सादुल कॉलोनी में राजस्थानी काव्य पाठ और विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। संस्था की अध्यक्ष दर्शना कंवर उत्सुक ने इस अवसर पर कहा कि राजस्थानी साहित्य में काव्य की बहुत समृद्ध परंपरा रही है।इसमें कालजयी काव्य रचनाओं का सृजन हुआ है और यह परंपरा आज भी जारी है।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती इंद्रा व्यास ने कहा कि राजस्थानी भाषा हर दृष्टि से परिपूर्ण है। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. वत्सला पांडे ने प्रस्तुत रचनाओं की सराहना की। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि कथाकार कमल रंगा ने कहा कि उजास संस्थान का यह प्रयास राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के आंदोलन को बल देने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। संस्था की उपाध्यक्ष डॉ. बसंती हर्ष ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि राजस्थान की गौरवशाली संस्कृति के विभिन्न आयाम प्रदर्शित करने वाली काव्य रचनाओं की प्रस्तुति ने कार्यक्रम को सार्थकता प्रदान की है।संस्था की कोषाध्यक्ष श्रीमती यामिनी जोशी ने कहा कि राजस्थानी काव्य सृजन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कार्यक्रम में सुश्री पूर्णिमा मित्रा ने सरस्वती वंदना ‘जै जै हे हंसवाहिनी’ प्रस्तुत की। युवा कवयित्री सुश्री कपिला पालीवाल ने प्रेम विवाह के बाद धोखे की शिकार युवतियों के मनोभावों पर आधारित एक समसामयिक रचना ‘एक सुपनो’ प्रस्तुत की। सुधा आचार्य ने ‘धान बोरी मांय छोड़ गया’ कविता के माध्यम से रिश्तों के मिठास से जुड़ी कविता प्रस्तुत की। राजस्थानी गीतकार श्रीमती मनीषा आर्य सोनी ने गीत ‘म्हैं एक राजस्थानी हूं’ सुनाया। बांग्ला मूल की कवयित्री सुश्री पूर्णिमा मित्रा ने ‘रेत सूं हेत’ और विश्वास कविताएं प्रस्तुत की। इस काव्य गोष्ठी में श्रीमती कृष्णा वर्मा, ऋतु शर्मा, सरोज भाटी, नीतू जोशी, सारिका बिस्सा, श्रीमती प्रमिला गंगल, इला पारीक और पम्मी भोजक ने अपनी कविताएं प्रस्तुत की। कार्यक्रम में पुरुष रचनाकारों की भी पूरी सहभागिता रही इस अवसर पर डॉ. एस. एन. हर्ष, डॉ.अजय जोशी, कवि- कथाकार राजाराम स्वर्णकार, डॉ. नीरज दईया, नवनीत पाण्डे, गिरिराज पारीक सहित अन्य वक्ताओं ने राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विविध आयामों पर अपने विचार प्रकट किए। आभार ज्ञापन डॉक्टर एस. एन. हर्ष ने किया।

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