Trending Now




बीकानेर,सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत यह तथ्य हैरान करता है कि देश में पांच हजार से ज्यादा पूर्व और वर्तमान विधायकों-सांसदों पर आपराधिक मामले लंबित हैं। इससे यही पता चलता है कि अपने देश में आपराधिक अतीत वाले जनप्रतिनिधियों की कितनी बड़ी संख्या है। चिंताजनक यह है कि ऐसे जनप्रतिनिधियों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है। हर स्तर के चुनावों में बड़ी संख्या में ऐसे प्रत्याशी उतर रहे हैं, जिन पर गंभीर आरोप हैं।

ताजा उदाहरण कर्नाटक का है। यहां हो रहे विधानसभा चुनावों में 16 प्रतिशत प्रत्याशी ऐसे हैं, जिन पर गंभीर आपराधिक मामले हैं। चूंकि इनमें सभी दलों के प्रत्याशी हैं, इसलिए इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि कोई भी दल आपराधिक मामलों का सामना कर रहे लोगों को चुनाव मैदान में उतारने से बाज नहीं आ रहा है।

इसका एक बड़ा कारण वह व्यवस्था भी है, जिसके तहत जेल में बंद लोग भी चुनाव लड़ने में सक्षम हैं। विंडबना यह है कि जेल में बंद लोग वोट देने के अधिकारी नहीं, लेकिन ऐसा व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। इस व्यवस्था का आधार यह तर्क है कि जब तक कोई दोषी सिद्ध न हो जाए, तब तक उसे निर्दोष ही माना जाना चाहिए।

यह तर्क गलत नहीं, लेकिन हमारे नीति-नियंताओं को इसका आभास होना चाहिए कि इसकी आड़ में ही राजनीति का अपराधीकरण हो रहा है और गंभीर आरोपों में लिप्त होने के आरोपित लोग विधानसभाओं और संसद में पहुंच रहे हैं। हाल में प्रयागराज में मारा गया गैंगस्टर अतीक अहमद एक समय विधायक और सांसद था। वह आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के बाद भी चुनाव लड़ने में इसलिए सक्षम रहा, क्योंकि राजनीतिक दलों ने बिना किसी शर्म-संकोच उसे संरक्षण दिया।

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर सुनवाई हो रही है कि सांसदों-विधायकों के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई कैसे हो, क्योंकि सच यह है कि ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन किए जाने के बाद भी उनका काम संतोषजनक नहीं। वे संसाधनों की कमी के साथ अन्य समस्याओं का सामना कर रही हैं। इसके चलते दागी जनप्रतिनिधियों के मामलों की सुनवाई अपेक्षित गति से नहीं हो पा रही है। इसके चलते हमारा लोकतंत्र कलंकित हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट को केवल यही नहीं देखना चाहिए कि आपराधिक मामलों का सामना कर रहे जनप्रतिनिधियों के मुकदमों की सुनवाई तेजी से हो, बल्कि उसे इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से कैसे रोका जाए। इसके लिए उसे चुनाव आयोग को अतिरिक्त शक्ति देनी चाहिए, जो यह मांग कर रहा है कि उन्हें चुनाव लड़ने का मौका न मिले, जिन पर गंभीर आरोप हैं और जिनके खिलाफ आरोप पत्र दायर हो चुके हैं। आखिर इस मांग में गलत क्या है?

Author