बीकानेर,आज नृसिंह चतुर्दशी के दिन भगवान नृसिंह अवतरित हुए थे. इस दिन भगवान नृसिंह ने हिरण्यकश्य का वध किया था. बीकानेर में नृसिंह चतुर्दशी के दिन नृसिंह मंदिरों में मेले का आयोजन होगा नृसिंह चतुर्दशी के मौके पर बीकानेर के प्राचीनतम डागा चौक स्थित नृसिंह मंदिर की खास रिपोर्ट.
भगवान नृसिंह के दोनों रूप का एकमात्र मंदिर: भगवान नृसिंह खंभा फाड़कर प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप के वध के दौरान उनका रौद्र रूप देखने को मिला था. इसके बाद भक्त प्रहलाद को दुलारते हुए उनका क्रोध शांत हुआ और वे श्याम रूप में नजर आए. सीताराम दाधीच कहते हैं कि भगवान नृसिंह के रौद्र रूप यानी कि भूरे नृसिंह और श्याम रूप नृसिंह के दोनों विग्रह का ये संभवत देश-प्रदेश में एकमात्र मंदिर है.
समतुल्य सोना देख कर लिए थे दोनों विग्रह: मंदिर के इतिहास से जुड़ी जानकारी बताते हुए सीताराम दाधीच कहते हैं कि पूर्व में जब यहां देवी मंदिर हुआ करता था तब मंदिर में एक धूणा हुआ करता था जहां दूर दराज से साधु- महात्मा आया करते थे. डागा जाति के लोगों ने भगवान नृसिंह के दोनों विग्रह मंदिर में स्थापित करने के लिए भेंट स्वरूप दोनों विग्रह के समतुल्य सोना महात्माओं को भेंट किया था.
सोने का आसन, अष्टधातु का मुख : मंदिर में स्थापित विग्रह के आसन और सिंहासन पूरी तरह सोने का बना हुआ है जो इस मंदिर के प्रति डागा समाज के श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है. मंदिर में भगवान नृसिंह का एक अष्ट धातु का मुख भी है. आज से करीब 96 साल पहले इसे मंदिर में स्थापित किया गया था. इससे पहले मुल्तानी मिट्टी से बने अलग-अलग पात्रों के मुख हुआ करते थे, हालांकि वो आज भी मंदिर में हैं और उनकी भी पूजा होती है.
अष्ट धातु के मुख का निर्माण करने में 6 महीने लगे. हर साल नृसिंह जयंती के मौके पर होने वाले मेले में अवतार लीला में भगवान नृसिंह के अवतार का पात्र निभाने वाला व्यक्ति इसको पहनता है. अष्ट धातु से बना ये मुख करीब 10 किलो का है. मेले के दिन जब पात्र इसे पहनता है और तब धीरे-धीरे इसका वजन बढ़ जाता है और करीब यह 20 किलो हो जाता है.
चांदी की कुर्सी झूले: मंदिर में हर साल नृसिंह जयंती पर होने वाली अवतार लीला मंचन के लिए में भक्त प्रहलाद के बैठने वाली कुर्सी पूरी तरह से चांदी की बनी है. तो वहीं सावन में होने वाले आयोजन में काम आने वाले झूले भी पूरी तरह से चांदी के हैं.
बीकानेर में नृसिंह चतुर्दशी के दिन नृसिंह अवतार और हिरण्यकश्यप के वध को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जमा होते हैं. लोगों में भी मेले को लेकर उत्साह देखने को मिल रहा है.
भगवान नृसिंह अवतार की लीला का मंचन के लिए चयनित होने वाले पात्र भी इसको लेकर बड़े उत्साहित हैं. 11 साल पहले भगवान नृसिंह का अवतार का पात्र निभाने वाले मनोज रंगा कहते हैं कि अपने पुरखों के साथ में इस मंदिर में आते रहे हैं. 11 साल पहले भगवान नृसिंह के अवतार का पात्र निभाया. अगर भगवान की कृपा हुई तो इस साल फिर वे नृसिंह अवतार का पात्र निभाएंगे.
लॉटरी से होता पात्र का चयन : मंदिर में पात्र के चयन को लेकर अलग प्रक्रिया है. अक्षय तृतीया के दिन देश के अलग-अलग कोने में रहने वाले मंदिर के ट्रस्टी बीकानेर आते हैं. मोहल्ले के मौजिज लोगों और पुजारी परिवार के साथ बैठक कर अलग-अलग पात्र के लिए आवेदन करने वाले व्यक्तियों की लॉटरी निकाली जाती है. जिसका लॉटरी में चयन होता है वही उस पात्र को निभाता है. इसका कारण इस प्रक्रिया को पारदर्शी रखना है. क्योंकि हर व्यक्ति भगवान नृसिंह, हिरणकश्यप और भक्त प्रहलाद के अवतार का पात्र बनना चाहता है. इसीलिए पात्रों का लॉटरी के जरिए चयन किया जाता है.
डागा जाति में हर काम से पहले भगवान नृसिंह की पूजा: मंदिर ट्रस्ट से जुड़े परिवार के एक सदस्य सुशील डागा कहते हैं कि डागा जाति में किसी भी काम की शुरुआत, शादी विवाह समारोह से पहले भगवान नृसिंह के दर्शन किए जाते हैं. किसी भी तरह के खाने के आयोजन में पहला भोग भगवान नृसिंह को चढ़ाया जाता है.