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बीकानेर,राजस्थान सरकार के स्वायत्त शासन विभाग डीएलबी में अंधेर नगरी चौपट राजा जैसे ही कुछ हालत नजर आ रहे हैं। दरअसल ताजा मामला यह है की पिछले महीने 21 मार्च को निगम आयुक्त गोपाल राम बिरड़ा द्वारा तथाकथित रूप से की गई एक जांच रिपोर्ट पर निदेशक स्वायत्त शासन विभाग ने महापौर सुशीला कंवर राजपुरोहित को राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 39 के तहत नोटिस जारी कर 7 दिन में स्पष्टीकरण मांगा था। जिसके जवाब में महापौर सुशीला कंवर ने 27 मार्च को समय सीमा में पत्र भेजकर इस पूरी जांच को झूठा और अनाधिकृत बताते हुए अधिनियम की धारा 39 के प्रावधानों के तहत जांच रिपोर्ट की कॉपी मांगी। हालांकि अगले ही दिन 28 मार्च को राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर ने महापौर सुशीला कंवर को राहत देते हुए डीएलबी के 21 मार्च को जारी नोटिस एवं धारा 39 की कार्यवाही को स्टे कर दिया था। लेकिन आज अचानक डीएलबी द्वारा प्रेषित पत्र में महापौर सुशीला कंवर को मांगी गई जांच रिपोर्ट कॉपी देने के जिक्र के साथ आगामी 7 दिवस में स्पष्टीकरण देने हेतु नोटिस जारी किया गया है। गौरतलब है की इस नोटिस में ना तो निदेशक के हस्ताक्षर किए गए हैं ना ही इस पत्र को डिजिटल साइन किया गया है। इस पत्र में जांच रिपोर्ट संलग्न कर भेजे जाने बाबत लिखा है जबकि मेल में कोई जांच रिपोर्ट संलग्न नही की गई। ऐसे में बिना हस्ताक्षर के इस पत्र के फर्जी होने की संभावना भी जताई जा रही है।

*पहले भी जारी ही चुके है डीएलबी से फर्जी आदेश*

पूर्व में भी डीएलबी से फर्जी स्थानांतरण आदेश तथा कई महत्वपूर्ण आदेश फर्जी साइन एवं फर्जी तरीके से जारी हो चुके हैं । जिसको लेकर निदेशक ने एक पत्र जारी कर इन फर्जी आदेशों का खण्डन करते हुए संदेहास्पद स्थिति में आदेश पुनः वेरिफाई करने एवं महत्वपूर्ण आदेश डीएलबी की वेबसाइट पर अपलोड करने का पत्र भी जारी किया था। इस मामले में फिलहाल डीएलबी की वेबसाइट पर इसे अपलोड नही किया गया है। साथ ही बिना साइन और बिना संलग्न दस्तावेजों के यह आदेश भी फर्जी हो सकता है।

*कानूनी रूप से डीएलबी ने की है न्यायालय की अवमानना*

कानूनी दृष्टि से देखा जाए तो 28 मार्च को राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर की न्यायाधीश पुष्पेंद्र सिंह भाटी द्वारा जारी आदेश अनुसार डीएलबी के 21 मार्च को महापौर के खिलाफ जारी नोटिस पर स्टे जारी किया गया था। जिसकी कॉपी महापौर एवं उनके वकील द्वारा डीएलबी को भेजी जा चुकी है। ऐसे में न्यायालय के निर्णय/आदेशों के विरुद्ध डीएलबी का यह नोटिस निदेशक हृदेश शर्मा के गले की फांस बन सकता है। अगर महापौर न्यायालय में इस नोटिस को लेकर जाती है तो न्यायालय के आदेशों की अवमानना करने पर निदेशक के विरुद्ध कार्यवाही भी हो सकती है।

*मानवीय भूल या विपक्ष की महापौर को दबाने की कोशिश*
जानकारों का कहना है की निदेशक जैसे वरिष्ठ अधिकारी तथा स्वायत्त शासन जैसे विभाग में इतनी बड़ी भूल की जाना मानवीय भूल तो नहीं हो सकती । हो सकता है निदेशक ने राजनैतिक दबाव में यह पत्र जारी किया हो। हालांकि महापौर सुशीला कंवर भी स्थानीय विधायक और मंत्री डॉ कल्ला पर नगर निगम में बेवजह हस्तक्षेप तथा विपक्ष का बोर्ड होने पर अनावश्यक परेशान करने के आरोप लगाती आई है। ऐसे में आपाधापी में की जा रही यह कार्यवाही कहीं न कहीं महापौर के कांग्रेस और मंत्री कल्ला पर लगाए आरोपों को सही साबित करती नजर आ रही है।
बहरहाल बिना साइन और बिना संलग्न दस्तावेज और हाई कोर्ट के आदेशों की अवमानना का यह नोटिस जनता के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। कमोबेश डीएलबी में बिना जानकारी और बिना फैक्ट को देखे जारी किया गया यह पत्र और निदेशक दोनो ही जगहंसाई का पात्र बन हुए है।

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