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बीकानेर,आल इंडिया रेलवे मैन्स फेडरेशन (एआईआरएफ) का शताब्‍दी वर्ष (100 Year ) पुनः होने पर देश के सभी जोन , मंडल स्तर ,सभी ब्रांचों मे रेल कर्मचारियों ने इसे पर्व की तरह बनाया और अपने सभी यूनियन कार्यालय की साज सजावट की ।

ऑल इण्डिया रेलवे मेन्‍स फेडेरेशन के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा जी ने लन्‍दन से सीधा देश के समस्त कर्मचारियों को यूनियन कार्यालय में लाइव प्रोजेक्टर पर आकर संबोधित किया ओर कहा कि संघर्ष का इतिहास रहा है AIRF का
ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन यानि रेल कर्मचारियों की सबसे बड़ी संस्था ! 1924 में आल इंडिया रेलवे मैन्स फैडरेशन का गठन हुआ, जिसके पहले अध्यक्ष राय साहब चन्द्रिका प्रसाद थे, जबकि मुकंद लाल इसके पहले महामंत्री बने ! उस दौरान रेलवे में छोटी बड़ी कई यूनियन थी, सभी कुछ ना कुछ मुद्दों को लेकर आवाज उठाया करती थी, फेडरेशन के पहले अध्यक्ष राय साहब की आवाज को ब्रिटिश हुकूमत दबा दिया करती थी। इसके परिणाम स्वरूप ही AIRF ने अपने गठन के साथ ही बिखरी हुई सभी यूनियन को एक मंच पर लाने का काम शुरु किया। हालाकि इस काम में यूनियन नेताओं से कहीं ज्यादा ब्रिटिश अफसरों ने बाधा उत्पन्न की। इतना ही नही उस समय यूनियन के महासचिव रहे कामरेड मुकुंद लाल सरकार पर सैकडों मुकदमें तक दर्ज किए गए, उनका उत्पीडन शुरु हुआ । हालत ये हो गई कि कामरेड मुकुंद लाल का ज्यादातर जीवन जेल में ही बीता।
AIRF के दूसरे महामंत्री कामरेड वी वी गिरी वही सख्श हैं जिन्हें श्रमिकों की लडाई लड़ते हुए देश के राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल किया । कामरेड गिरी ने आंदोलन के जरिए ब्रिटिश सरकार और रेल महकमें की नाक में दम कर दिया। दबाव इतना बढ़ाया कि पहली बार 27 / 28 फरवरी 1930 में सरकार ने आल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के साथ बैठक करने को मजबूर होना पड़ा।
एआईआरएफ के संघर्ष से मांगे जरूर पूरी हुई पर उस वक्त की सरकार उत्पीड़न की कार्रवाई बंद नहीं कर रही थी, 28 जून 1931 को तो हद ही पार कर दी और 43000 अस्थाई रेल कर्मचारियों की छटनी कर उन्हें अचानक घर बैठा दिया गया। इतनी बड़ी कार्रवाई पर कामरेड गिरी कहां चुप बैठने वाले थे, उन्होने सख्त रुख अपनाया और सरकार को हडताल का नोटिस दे दिया। बस हडताल की नोटिस भर से सरकार ने कदम पीछे खींच लिए और सभी 43000 कर्मचारियों को बहाल कर दिया गया। 1937 में बने हमारे नए एआईआरएफ महामंत्री कामरेड एस गुरुस्वामी 1940 में सरकार से मंहगाई भत्ता दिए जाने की मांग रखी । समझ सकते हैं कि देश गुलाम था, अंग्रेजी हुकूमत आसानी से कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं थी, लिहाजा कामरेड ने आंदोलन का रुख किया और संघर्ष तेज किया। हालात बिगड़ता देख सरकार ने बातचीत की पेशकश की। सरकार झुकी और महंगाई भत्ते के रूप में दो से तीन रुपये तक प्रतिमाह मंहगाई भत्ता के रूप में वेतन बढ़ा दिया गया।
चार साल बाद यानि 1944 में AIRF ने स्थाई वेतनमान, वेतन, भत्तों तथा अन्य सुविधाओं के लिए कानूनी स्ट्रक्चर बनाने की मांग रखी गई। इसके लिए कामरेड गुरुस्वामी ने कहाकि सरकार वेतन आयोग का गठन करे, दो साल के लम्बे संघर्ष के बाद आखिर एक बार फिर सरकार को झुकना पडा और 22 जून 1946 सरकार पहला वेतन आयोग गठन किया गया !
AIRF का संघर्ष यहीं नहीं रुका , कर्मचारी हितों की तमाम मांगो को लेकर 1960, 1968 और 1974 में ऐतिहासिक रेल हड़ताल हुई ! इस दौरान कर्मचारियों का उत्पीड़न तो किया ही गया, कई जगह पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ बल का प्रयोग किया बल्कि गोलियां भी चलाई, जिसमें कई रेलकर्मी शहीद हो गए !

1960 की हड़ताल
सन 1960 मे केवल रु 5/- महंगाई भत्ते की मांग को लेकर रेल हडताल हुई ! इस हडताल मे 12 जुलाई को, दमनकारी गुजरात पुलिस ने दाहोद के पांच कामरेड साथियो पर गोलियां चलाई जिसमें वे शहीद हो गये। AIRF ने इन शहीदों की याद मे दाहोद पर शहीद भवन का निर्माण किया गया है , जहाँ प्रतिवर्ष 12 जूलाई को शहीद दिवस के रुप मे मनाया जाता है।

1968 की रेल हड़ताल
1968 की हड़ताल केंद्र सरकार ने द्वितीय केंद्रीय वेतन आयोग द्वारा अनुशंसित डीए फार्मूले को स्वीकार करने से इनकार करने के बाद शुरु हुई थी, और AIRF की अगुवाई में रेलवे कर्मचारी हड़ताल को सफल बनाने के लिए बहादुरी से कूद पडे थे. इस दौरान तत्कालीन सरकार ने जिस बर्बरता के साथ आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया, यह वाकई शर्मनाक है ! इन आंदोलनकरियो पर पुलिस ने बिना कोई चेतावनी दिए अचानक गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें हमारे 9 बहादुर कामरेड शहीद हो गए ,इसके बाद भी कर्मचारी पीछे नहीं हटे और अपनी मांगे पूरी होने तक पूरे हौसले और एकजुटता के साथ डटे रहे !

1974 की ऐतिहासिक हड़ताल
वैसे तो हम सभी भारतीय रेल के कर्मचारियों के लिए 8 मई 1974 का दिन गर्व का दिन है। आज रेलकर्मी हर साल बोनस हासिल करते है, लेकिन ज्यादातर कर्मचारियों को ये पता ही नहीं है कि आखिर इस बोनस के लिए कितना संघर्ष हुआ और कितने लोगों ने शहादत दी और मजदूर मसीहा स्व. जार्ज फर्नाडीज का इसमें कितनी अहम भूमिका रही। बोनस के लिए 8 मई 74 के दिन को हमेशा याद रखा जाएगा ! अब इस ऐतिहासिक हड़ताल को लगभग 49 साल बीत चुके है, इस दौरान लगभग सभी हड़ताली कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इसलिए जरूरी है की इतिहास के पन्नों को पलटा जाए और अपने नेताओं के संघर्ष को याद किया जाए। आज हालात बदल चुके है, वजह साफ है, क्योंकि हमारी अगुवाई आँल इंडिया रेलवे मेन्स फैडरेशन जैसे मजबूत लीडरशिप के हांथों में है, 1974 में भारतीय रेल में लगभग 20 लाख कर्मचारी कार्यरत थे, जबकि ट्रेनों की संख्या काफी कम थी, आज मात्र 12.50 लाख कर्मचारी है और 22 हजार ट्रेनों के जरिए रोजाना ढाई करोड़ लोगों को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
देश आजाद हो चुका था , फिर भी तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी लोकतंत्र को अपने अनुकूल बनाए रखना चाहती थी, इसीलिए हड़ताल की नोटिस पर भारत सरकार वार्ता के बजाय टकराव का रास्ता चुनती रही । हालत ये थी कि हड़ताल शुरू भी नही हुई और 1974 की हड़ताल की अगुवाई कर रहे स्व. जार्ज फर्नाडीस को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया गया । बड़े – बड़े जनसंगठनों के कर्मचारियों को भयभीत करने और घुटना टेक कराने के लिए रेलवे कालोनियों की बिजली काट दी गई, पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई तथा पुलिस के माध्यम से उन्हें और उनके बच्चों को मकान खाली करने को मजबूर किया गया। सैकड़ों कर्मचारियों के घरों का सामान सड़कों पर फेंक दिया गया । रेलवे के इलाकों को सेना के हवाले कर दिया गया ! तानाशाही और दमन क्या हो सकता है इसका पूर्वाभ्यास इस हड़ताल के तोड़ने में नजर आने लगा था। इस हड़ताल ने समूचे देश के मजदूरों और कर्मचारियों में एक आत्मविश्वास और संघर्ष का जज्बा पैदा किया ! कई लाख लोग जिन्हें नौकरी से निकाला गया था या जिन्हे नौकरी से हटा दिया गया था, वे लगभग 3 वर्ष तक बगैर वेतन के संघर्ष और पीड़ा के दिन गुजारते रहे और 1977 में कांग्रेस सरकार के पतन के बाद जब जनता पार्टी की सरकार बनी तभी सबको काम पर वापस लिया गया ।
उस वक्त सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा था कि ’बोनस इस द डेफर्ड वेज’ और इसी सिंद्धांत के आधार पर रेल कर्मचारियों के संगठन ने बोनस की मांग की थी। रेल संगठनों की मांग थी कि उस समय के जो अस्थाई रेल कर्मचारी थे, उन्हे भी स्थाई किया जाए । स्व. फर्नांडीस और रेल मजदूर संगठनों का यह आंकलन था कि रेल कर्मचारियों की सारी मांगे पूरी करने पर भारत सरकार पर मुश्किल से 200 करोड़ का बोझ आता, जबकि रेल हड़ताल को तोड़ने के ऊपर सरकार ने इससे दस गुनी राशि अनुमानतः दो हजार करोड़ रूपये खर्च किए थे।

चूंकि 1971 में श्रीमति इंदिरा गॉंधी को लोकसभा के चुनाव में विशाल बहुमत मिला था और फिर बंग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में निर्माण के बाद श्रीमति इंदिरा गॉंधी की लोकप्रियता चरम पर थी । स्व. ललित नारायण मिश्र, भारत के रेल मंत्री थे और स्व. इंदिरा गॉंधी रेल हड़ताल को उन्हे हटाये जाने के षड़यंत्र के रूप में देख रही थीं, उनके सूचना स्रोतों ने उन्हे यह समझाया था कि अगर उन्होंने रेल कर्मचारियों की मांगे मान ली तो देश में कर्मचारियों की बगावत की एक नई श्रंखला शुरू हो जायेगी । वैंसे भी अपने अंहकारी स्वभाव और लोकप्रियता के मद में उन्हे यह गवारा नही था कि उन्हे कोई चुनौती दे ।
इस दौरान स्व. जार्ज फर्नांडीस ने जेल से अपने साथियों को पत्र लिखकर आगाह किया और कहा था ’’ दिस इस ड्रेस रिहर्सल ऑफ फासिस्म’’ । हड़ताली कर्मचारी भोपाल की जेल में रात को रेल के इंजनों की आवाज सुनते थे और रेल कर्मचारी मन में भयभीत होते थे कि लगता है रेल हड़ताल टूट गई है, भयभीत होकर कर्मचारी काम पर वापस आ गये है इसलिये गाड़ियों की आवाज सुनाई पड़ रही है. परन्तु सच्चाई यह थी कि रेल कर्मचारियों के संकल्प को तोड़ने के लिये सरकार टेरीटोरियल आर्मी के चालकों से कुछ इंजनों को चलवाती थी ताकि कर्मचारी और उनके परिवार के लोग घबराकर हड़ताल तोड़ दें। लगभग 15 दिन यह हड़ताल चली और 1975 के आपातकाल की पृष्ठभूमि इस हड़ताल ने लिख दी, समूचे देश ने आंतरिक सुरक्षा कानून ’’मीसा’’ का पहला स्वाद इस हड़ताल में चखा था ।
1974 की यह रेल हड़ताल न केवल देश की नही बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी हड़ताल थी, जिसने देश की सत्ता को हिला दिया था। अब इस हड़ताल को लगभग 49 वर्ष होने को हैं. इन 49 वर्षों में अनेकों प्रकार के राजनैतिक बदलाव आये हैं परन्तु इस रेल हड़ताल ने जिन बुनियादी बातों को लेकर लकीर खींची थी, वे अब भी यथावत है । इस हड़ताल के दौरान कितने ही रेल कर्मचारी दवा के अभाव में मौत के शिकार हो गए, देश के अनेक रेलवे स्टेशनों पर पुलिस ने गोलियाँ चलाई और मजदूर मारे गए।
विपरीत हालातों में रेलकर्मचारी दोगुने जोश और हिम्मत से काम करते हैं। हालांकि देश में जब भी युद्ध के हालात बने है, रेलकर्मचारियों ने न सिर्फ सैन्यकर्मियों को उनके गन्तव्य तक पहुंचाने का काम किया, बल्कि गोला बारुद और हथियार तक सीमा पर पहुंचाने से भी हम पीछे नहीं रहे। जब कोरोना के कहर से दुनिया कराह रही थी, देश ही नहीं पूरी दुनिया में लाँक डाउन था, और लोग घरों में कैद हो गए थे, तब भी हमारे 10 लाख से ज्यादा रेल कर्मचारी काम पर रहे । किसी राज्य में खाद्यान का संकट न हो जाए, कहीं दवा, फल और सब्जी की कमी न हो जाए, वो काम हमारे रेल कर्मचारी कर रहे थे। इसके बाद भी हमेशा से ही भारतीय रेल कर्मचारियों पर सरकार की नजर टेढ़ी रही है।
ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन 1932 में आईटीएफ के साथ जुड़ा ! यहां भी हमारा एक समृद्ध इतिहास है ! कई मौकों पर आईटीएफ ने AIRF साथ मिलकर संघर्ष किया ! यही वजह है कि महान मजदूर नेता स्व. उमरावमल पुरोहित लगातार 34 साल फेडरेशन के अध्यक्ष रहे ! दुनिया भर में उनकी ऐसी स्वीकार्यता रही कि वे दो टर्म लगातार आईटीएफ के भी अध्यक्ष रहे ! आईटीएफ ने भी कभी उनके सम्मान में कमी नही होने दी, आज हम जिस सभागार में बैठे है, ये उन्हें ही समर्पित है , जो हमारे लिए गर्व की बात है ! बात अगर मजदूर आंदोलन के पुरोधाओं की करें तो लोकनायक जयप्रकाश, जार्ज फर्नाडीज, उमरावमल पुरोहित, प्रिया गुप्ता, एस गुरुस्वामी, जे पी चौबे का नाम अग्रणी पंक्ति में आएगा, जिन्होंने न सिर्फ विभिन्न रेल हड़तालों में अहम योगदान दिया, बल्कि सरकार के उत्पीड़न के भी शिकार बने !
देश और दुनिया में अब महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है , जबकि मजदूर आंदोलन से निकली मणिबेन कारा 1963 में ही ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन की अध्यक्ष बनी और वो 5 साल तक अध्यक्ष रहीं ! उनके कुशल नेतृत्व में फेडरेशन ने मजदूर हितों की तमाम लङाई लड़ी और इसमें वो कामयाब भी रही !
अपने 100 साल के स्वर्णिम इतिहास में फेडरेशन के संघर्ष और उपलब्धियों को अगर गिनाया जाए तो हमें ये कहने में कत्तई संकोच नहीं है कि हमने इस दौरान रेल मजदूरों के लिए वो मुकाम हासिल किया है , जो किसी संगठन के लिए पाना नामुमकिन है ! ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के वर्तमान अध्यक्ष डॉ एन कन्हैया और महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा भी न सिर्फ अपने पुराने नेताओं के रास्ते पर चल रहे है, बल्कि सही मायने में ये दोनों मजदूरों की आवाज भी बने हुए है !
शताब्दी वर्ष पर अगर बात AIRF नेतृत्व की करें तो हम दावे के साथ कह सकते है कि सभी अध्यक्ष और महामंत्री ने फेडरेशन को आगे ले जाने में पूरी ताकत लगाई है ! फेडरेशन का नेतृत्व बतौर अध्यक्ष आई बी सेन (1930 से 1931 ), जमनादास मेहता ( 1931 से 1944 ) वी वी गिरी ( 1944 से 1946 ) , जयप्रकाश नारायण ( 1947 से 1953 ) एस गुरुस्वामी ( 1957 से 1963 ) मणिबेन कारा ( 1963 से 1968 ) पीटर अल्वारिस ( 1968 से 1973 ) जार्ज फर्नाडीज ( 1973 से 1976 ) प्रिया गुप्ता ( 1976 से 1979 ) उमरावमल पुरोहित ( 1980 से 2014 ) और राखालदास गुप्ता ( 2014 से 2020 ) रहे ! डॉ एन कन्हैया 2020 से अब तकक इस फेडरेशन के अध्यक्ष है !
जहाँ तक महामंत्री का सवाल है , मुकुंद लाल सरकार (1925 से 1927 ) वी वी गिरी ( 1927 से 1937 ) एस गुरुस्वामी ( 1937 से 1957 ) पीटर अल्वारिस 1957 से 1968 ) प्रिया गुप्ता ( 1968 से 1975 ) जे पी चौबे ( 1975 से 2008 ) तक अपने पद पर बने रहे ! वर्तमान में शिवगोपाल मिश्रा 2008 से अभी तक ) महामंत्री ने किया है !

इस अवसर पर रेल मंत्री श्री अश्वनी वैष्णव ,एवं रेलवे बोर्ड सी ई ओ श्री ए के लोहाटी ने सभी रेल कर्मचारियों को शताब्दी अवसर पर बधाई एवं शुभकामनाएं दी
इस संबोधन को बीकानेर की सभी शाखाओं के साथ बीकानेर स्टेशन पर स्थित बीकानेर शाखा में कॉम प्रमोद यादव मंडल मंत्री के नेतृत्व में सैकड़ो कर्मचारियों ने भाग लिया इस मे कॉम ब्रजेश ओझा जोनल उपाध्यक्ष, कॉम गणेश वशिष्ठ सचिव लालगढ़ शाखा, बलबीर , मोहम्मद सलीम क़ुरैशी, दीनदयाल ,पवन कुमार बीकानेरी,संजय कुमार, लक्ष्मण कुमार, जय प्रकाश ,राजेन्द्र खत्री, मुकुल,हरिदत्त , संजीव मालिक, दिलीप कुमार, सुशील, हरि, नवीन, आनंद मोहन,नवीन ,सुनील के साथ सैकड़ो कर्मचारियों ने भाग लिया इस अवसर पर सभी ने एक दुसरो को मीठा मुँह करके बधाई दी

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