Trending Now












बीकानेर,मेक इन इंडिया के तहत देश में निर्मित अब तक की सबसे बेहतरीन के में चल रहे सप्त शक्ति कमान के सैनिकों के प्रशिक्षण में सोमवार प्रशिक्षण दिया गया ही करीब चालीस साल में भारतीय सेना उपयोग कर रही मीडियम स्केल 130 एमएम आर्टिलरीगन से फायर किए गए। असल के 9वज स्वदेशी आर्टिलरी का उम्दा उदाहरण है। अगस्त 2019 में देश में निर्मित कोरिया तकनीक की इस गन की पहली खेप सेना में शामिल की गई। इसका उपयोग पहाड़ी और रेगिस्तानी दुर्गम स्थलों पर आसानी हैं से किया जा सकता है। चीन से लगती सीमा पर भारतीय सेना से कुछ दिन पहले ही वह को तैनात किया है। अब रेगिस्तान में इसके संचालन और निशाने पर सटीक प्रहार करने का भारतीय सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिससे युद्ध जैसे हालत में देश के पश्चिमी मोर्चे के दुर्गम रेगिस्तान में दुश्मन से दो-दो हाथ कर सकें।

 

यह है 130 एमएम आर्टिलरी गन

को गोले से ध्वस्त कर सकता है। 27.5 किलोमीटर तक टारगेट यह मीडियम स्केल गन है जो 45 डिग्री तक घूमकर फायर कर सकती है।

19 सैनिक की टीम मिलकर इसे चलती है। इसे ट्रक या टैंक के पीछे जोड़कर एक से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है।

फस निर्मित इस आर्टिलरी गम का प्रयोग भारतीय सेना 40 साल से कर रही है।

फायर करते समय जोरदार शोर करती है। यह अधिक हाई एंगल पर फायर करने में सक्षम नहीं है।

आर्मी कमांडर भी युद्ध नीड में

दक्षिण पश्चिम रेजिमेंट के वार्षिक अभ्यास निरीक्षण करने सोमवार को सप्त शक्ति कमांड के आर्मी कमांडर एएस मिंडर भी पहुंचे। उन्होंने हेलीकॉप्टर से महाजन फील्ड फायरिंग रेंज का निरीक्षण किया। वार्षिक प्रशिक्षण में 130 एमएम आर्टिलरी गन और के 9 बज समेत आर्टिलरी रेजिमेंट के युद्धक हथियार शामिल है।

सुबह से रात तक धोरों में ऊगली आग

महाजन रेंज में दक्षिण पश्चिम कमान के सैनिकों के प्रशिक्षण कैम्प में सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक आर्टिलरी गन चलाए गए। धोरों में गन की नली से फायर के साथ निकल रहे आग के गोले दूर तक नजर आए।

जानिए क्या और क्यों महत्वपूर्ण है के 9 वज

पर लगे इस आर्टिलरी मन में 5 मेंबर रहते हैं। यह पूरी तरह वातानुकूलित होने में भीषण गर्मी में रेतीले धोरों में सैनिक काम से सकते हैं।

सेंसर स्कैन सिस्टम लगा रहता है। जो न्यूक्लियर केमिकल वातावरण में होने पर स्कैन कर लेता है। यानि परमाणु या रसायनिक हमला होने वाली जगह पर भी काम में लिया जा सकता है। बख्तरबंद में सैनिक तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन को शुद्ध कर पहुंचती है।

यह 70 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने वाले चैनटायर वाहन पर लगी होती है। जो ऊँचे रेतील पीरों और पहाड़ी क्षेत्र में भी आसानी से दौड़ने की ताकत रखता है।

गन से भारी एक्सप्लोसिव वाला गोला 40 किलोमीटर के दायरे में टारगेट को ध्वस्त कर सकता है।

न की नली 73 डिग्री तक मूव कर सकती है। यानि टारगेट के धरातलार सामने से और ऊपर से गोला बाग

यह पूरी तरह ऑटोमेटिंग संचालित गम है। जिसे ओपी से कमांड पोस्ट को टारगेट का सिग्नल मिलता है। कमांड पोस्ट से नक्शे पर टारगेट गन में फिक्स कर सटीक फायर होता है।

Author