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बीकानेर,प्रदेश में साइबर ठगी के प्रकरण लगातार बढ़ते जा रहे हैं और बड़ी तादाद में लोग अपनी मेहनत की कमाई गंवाने में लगे हुए हैं. हालांकि अप्रैल 2021 से राजस्थान में साइबर फाइनेंसियल फ्रॉड को रोकने के लिए एक हेल्प लाइन चालू की गई .इसके बावजूद साइबर क्राइम पर लगाम नहीं लग पा रही है.

जयपुर. प्रदेश में साइबर ठगों के हौसले बुलंद है. हालांकि अप्रैल 2021 से राजस्थान में साइबर फाइनेंसियल फ्रॉड को रोकने के लिए एक हेल्प लाइन चालू की गई. जिस पर बड़ी तादाद में पुलिस को शिकायत भी भी प्राप्त हुई लेकिन उसके बावजूद भी पुलिस कुछ खास हासिल नहीं कर पाई हेल्पलाइन शुरू होने के बाद उस पर आने वाली शिकायतों पर तुरंत एक्शन लेते हुए पुलिस ने ठगी गई राशि को फ्रीज कराने का काम किया.

फ्रीज करने की कार्रवाई से ठगी गई राशि में से महज 10% राशि को ही पुलिस फ्रिज करवा सकी. बाकी 90% राशि ठगों तक जाने से पुलिस नहीं रोक सकी. हेल्पलाइन शुरू होने के 1 साल के अंदर पुलिस को तकरीबन 45000 शिकायतें प्राप्त हुई, जिसमें ठगी गई राशि 88.90 करोड़ रुपए की रही. जिसमें से पुलिस मात्र 8.76 करोड़ रुपए की राशि ही फ्रिज करवा सकी.

बेलगाम साइबर ठगों ने लगाया करोड़ों का चूना
हर जिले में साइबर सेल फिर भी…: प्रदेश में लगातार बढ़ते साइबर ठगी के प्रकरणों को देखते हुए प्रदेश के हर जिले में साइबर सेल का गठन किया गया है. इसके साथ ही बाहर से साइबर एक्सपर्ट भी पुलिस ने हायर कर रखे हैं . इसके बावजूद भी प्रदेश में साइबर ठगी के प्रकरणों को लेकर हालात बेहद विकट बने हुए हैं. पुलिस महज कुछ ही प्रकरणों में कार्रवाई करते हुए आरोपियों तक पहुंच पाती है और उन्हें गिरफ्तार कर पाती है.

अधिकतर प्रकरणों में पुलिस ठगों का पता तक नहीं लगा पाती और वह केस एक रहस्य बनकर फाइलों में दफन होकर रह जाता है. अलवर का मेवात क्षेत्र और भरतपुर का कुछ क्षेत्र साइबर ठगों का गढ़ बना हुआ है. साइबर ठग यहां बैठक पूरे देश में ठगी की बड़ी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी राजस्थान पुलिस उनके खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है.एक्शन क्या लिया?स्लो एडवांसमेंट विफलता की बड़ी वजह: साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज का कहना है कि प्रदेश में साइबर ठगी के लगातार बढ़ते हुए प्रकरणों के पीछे की सबसे बड़ी वजह राजस्थान पुलिस का स्लो एडवांसमेंट है. पुलिस जिस सिस्टम पर काम करती है उसे आमतौर पर अपडेट होने में 2 से 3 साल का वक्त लगता है जबकि टेक्नोलॉजी हर 6 महीने में खुद को अपग्रेड कर रही है. इसके साथ ही पुलिसकर्मियों को जो ट्रेनिंग दी जाती है वो भी काफी पुरानी टेक्नोलॉजी पर आधारित होती है. जबकि टेक्नोलॉजी का एडवांसमेंट हर 6 से 8 महीने में हो रहा है, नई टेक्नोलॉजी के साथ नई-नई चीजें जुड़ती है. नए तरह के अपराध होते हैं, उनके कोडिंग पैटर्न अलग तरीके के होते हैं और नेटवर्क की फ्रीक्वेंसी का पैटर्न अलग होता है. वहीं इसकी तुलना में राजस्थान पुलिस खुद को अपडेट करने की बजाय पुराने ढर्रे पर ही काम कर रही है. साइबर ठगी की प्रकरणों को सुलझाने के लिए भी पुलिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने की बजाए फिजिकल पैटर्न पर काम करने को ज्यादा जोर देती है.बेखौफ साइबर ठग: साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज का कहना है कि प्रदेश में साइबर ठग बेखौफ हो चुके हैं. पहले साइबर ठग हैकिंग के जरिए लोगों को अपनी ठगी का शिकार बनाते थे लेकिन अब लोगों को फोन कर उन का बिजली का कनेक्शन काटने, क्रेडिट कार्ड को ब्लॉक करने, पॉलिसी रिन्यू करने या फिर अन्य कोई लालच देकर ठगी का शिकार बना रहे हैं.

अलवर और भरतपुर में ऐसे कई गैंग सक्रिय हैं जो टेक्नोलॉजिकल साउंड भी नहीं है और न ही उनका एजुकेशन क्वालीफिकेशन ज्यादा है, उसके बावजूद भी वह लोगों को लगातार अपनी ठगी का शिकार बना रहे हैं. तकनीकी भाषा में इसे सोशल इंजीनियरिंग कहा जाता है, जिसके तहत लोगों को अपने झांसे में फंसा ओटीपी प्राप्त कर या उन्हें लिंक भेज कर ठगी की वारदात को अंजाम दिया जा रहा है. ताज्जुब की बात यह है कि ठगी की वारदात को अंजाम देने के बाद भी ठग अपने नंबर चालू रखते हैं और उसके बावजूद भी पुलिस लापरवाही बरतते हुए उन्हें गिरफ्तार नहीं करती हैसाइबर फ्रॉड से नुकसान
पुलिस की लापरवाही: साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज का कहना है कि इन दिनों प्रदेश में साइबर ठग मुख्यमंत्री, चीफ सेक्रेटरी, डीजीपी सहित कई नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स की फोटो नाम का गलत इस्तेमाल कर ठगी की वारदात को अंजाम दे रहे हैं. पुलिस एक अकाउंट को सस्पेंड करवाती है तब तक ठग दूसरा अकाउंट बनाकर उससे ठगी करना शुरू कर देते हैं. हालांकि सरकार द्वारा की गई अपील पर ट्विटर, फेसबुक व अन्य सोशल नेटवर्किंग मीडियम ठगों की लोकेशन देने को तैयार हो जाती है लेकिन पुलिस इन तथ्यों को इन्वेस्टिगेट नहीं करती और न ही उन अपराधियों को पकड़ती है.

केवल मामला हाईप्रोफाइल होने पर पुलिस टि्वटर या फेसबुक को रिक्वेस्ट करके उन प्रोफाइल को बंद करवा देती है लेकिन ठगी के प्रकरणों को रोकने और ठगों को गिरफ्तार करने में विफल रहती है. ऐसे में राजस्थान पुलिस के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह खुद को एडवांस बनाएं और टेक्नोलॉजी का अपग्रेडेशन करें. आज हर थाने पर साइबर ठगी के मामले दर्ज होते हैं लेकिन उनका अनुसंधान करने वाले पुलिसकर्मी टेक्नोलॉजी के प्रति अपग्रेड नहीं होते हैं. ऐसे में पुलिस कर्मियों की प्रॉपर ट्रेनिंग और टेक्नोलॉजी का ज्ञान होना बेहद आवश्यक है. इसके साथ ही ऐसे छोटे-छोटे गिरोह जो लगातार साइबरठगी की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं, उन्हें गिरफ्तार करना बेहद जरूरी है.नया पैंतरा

जागरूकता में समाधान: भारद्वाज का कहना है कि साइबर ठगी की वारदातों को रोकने के लिए जनता का जागरूक होना भी बेहद जरूरी है. जनता ठगों द्वारा दिए जाने वाले किसी भी लालच में ना आए और ठगों द्वारा एटीएम कार्ड, क्रेडिट कार्ड ब्लॉक करने, खाता फ्रीज करने, बिजली का बिल जमा नहीं होने पर कनेक्शन काटने आदि के मैसेज या कॉल प्राप्त होने पर ना घबराए व ओटीपी बताने से बचे.

जिस दिन जनता ठगों के इन तमाम तरीकों को लेकर जागरूक हो जाएगी उस दिन साइबर ठगी की वारदातों में अपने आप ही कमी आ जाएगी. इसके साथ ही जनता किसी भी अननोन एप्लीकेशन को अपने मोबाइल या कंप्यूटर पर डाउनलोड करने से बचे. यदि ठगों द्वारा भेजे गए किसी लिंक पर क्लिक करके कोई एप्लीकेशन डाउनलोड की जाती है तो उससे मोबाइल या कंप्यूटर में मॉलवेयर आने की संभावना प्रबल हो जाती है. जिसके बाद उस मोबाइल और कंप्यूटर का एक्सेस ठग अपने हाथों में लेकर ठगी की बड़ी वारदातों को अंजाम दे सकते हैं.इसके साथ ही जनता अपने मोबाइल व कंप्यूटर पर पायरेटेड सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने से बचें और ई स्कैन व अन्य एंटीवायरस को डाउनलोड कर हमेशा अपडेट करके रखें. साइबर ठगी की 80% वारदातें पायरेटेड सॉफ्टवेयर और जनता की अपनी गलती के चलते होती हैं. इन तमाम चीजों को लेकर सतर्कता रख कर खुद को साइबर ठगी का शिकार होने से और अपनी मेहनत की कमाई को गंवाने से बचा जा सकता है.

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