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बीकानेर,मेरी 19 जून को 1975 को शादी हुई थी, दिन में झुंझुनू ससुराल से लौटा ही था कि अर्ध रात्रि में सूत्रों से अचानक समाचार मिला कि इमरजेंसी कि घोषणा हो गयी है और तुम्हारे नाम का वारंट है, सुबह गिरफ्तारी हो जाएगी i
एकदम मिले समाचार से हतप्रभ और किम कर्तव्य कि स्थित i किसी को कुछ बताये बिना ( पत्नी को साझा कर ) प्रातः 3/30 बजे पडोसी कि छत से होते हुए पिछली गली से भेष बदल कर फरार हुआ सुब्ह घर पर पुलिस पहुंची, तलाशी ली i
पूरे आपातकाल में बचते बचाते, दर दर कि ठोकरे खाते हुए कभी रायसिंघनगर क़े मुरबो में, कभी ब्यावर, कभी पंजाब, छ महीने कलकत्ता और कभी छुपते छुपाते बीकानेर में वे काले दिन बिताये l
मजे कि बात ऊपर से यह कि विभाग प्रचारक ज़ी क़े आदेश कि अमुक दो घरों की राशन व्यवस्था तुम्हे करनी है, खैर i
तब हमें जिंदगी का यह तजुर्बा हुआ कि पुलिस से भागने पर क्या मनोदशा होती है, परिवार को छोड़ने का क्या दर्द होता है i
जिन लौगो को भागने का मौका नही मिला और घर से ही गिरफ्तारिया हो गयी, वे ज्यादा मजे में रहे l आज उनका मीसा बंदी में नाम भी आता है, अवसर भी बैठे बैठाये मिल रहा है i परन्तु रिखब दास ज़ी बोड़ा एवं हमारे जैसे लोग जो कि खाना बदौस कि तरह भटकते हुए वे काले दिन कैसे कैसे करके बिताये भगवान ही जानता है i
आज भी वे दिन याद करके आत्मा कांपती है परन्तु इस बात की ख़ुशी भी है कि आज उस संघर्ष व लाखों लोगों क़े त्याग कि बदौलत मोदीजी व योगीजी जैसे महापुरुष शीर्ष नेतृत्व कर राष्ट्र को विश्व गुरु बनाने को दिन रात लगे है i
कहावत है कि आम का पेड़ लगाता कोई और है और आम खाने वाले कोई और ही होते है, जिन्होंने कभी लाठी डंडा खाया नही, कोई संघर्ष या आंदोलन किया नही — आज वे सत्ता सुख भोग रहे है l
जिस कांग्रेस ने संविधान की हत्या की, जिसने सेकड़ो बार संविधान को तोड़ा मरोड़ा और हिन्दुओ क़े खिलाफ काले क़ानून बनाये, आह वे कोंग्रेसी बड़ी बेशर्मी क़े साथ संविधान बचाओ की बातें करके लोकतंत्र का उपहास उड़ा रहे है l

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