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बीकानेर,रियासत कालीन बीकानेर शहर में विभिन्न जातीय समाजों से ताल्लुक रखने वाले 22 तालाब, तलाई और बावड़ियां समाज के लोगों की बेरुखी के चलते बेनूर हो गई है। ये तालाब बीकानेर में आज भी रख रखाव से वर्षा जल के प्राकृतिक जल स्त्रोत बन सकते हैं। हालांकि इनकी आगोर अपना स्वरूप खोती जा रही है परंतु समाज के लोगों की इच्छाशक्ति हो तो आगोर भी ठीक हो सकती है। समाज की अपनी इस सार्वजनिक संपदा के प्रति कितनी जिम्मेदारी है इसका भान तो प्रशासन के अभियान से ही हो जाता है। दूसरे लोग आकर आपका घर साफ करें आपका होना क्या निर्थरक हो गया है। सभी समाज जिनके बाप दादाओं ने ये परिसंपतियां बनाई उनको संरक्षित और सुरक्षित तो रख लें। समाज संगठित है ? इनके ट्रस्ट और संगठन बने है। इन ट्रस्ट और संगठनों की भूमिका आकलन करें तो निराशा ही होगी। प्रमाण के रूप में अनदेखी के चलते इनके हालत प्रत्यक्ष प्रमाण है।
संभागीय आयुक्त और जिला प्रशासन ने तो प्रतिकात्मक रूप से जन जागृति के बतौर शहर के संसोलाब तालाब पर श्रमदान किया है। बाकी काम समाज करके दिखाएं। वर्षा पूर्व संभागीय आयुक्त नीरज के पवन, जिला कलेक्टर भगवती प्रसाद कलाल, जिला परिषद की मुख्य कार्यकारी अधिकारी नित्या के., निगम आयुक्त सिद्धार्थ पलानीचामी, अतिरिक्त संभागीय आयुक्त एएच गौरी, अतिरिक्त कलेक्टर नगर अरुण प्रकाश शर्मा अधिकारी और कर्मचारी तालाब के सफाई अभियान में जुटे । अब जिम्मेदार समाज वर्षा आने से पहले अपने अपने समाज के तालाब, तलैया, बावड़ी जैसी भी स्थिती में हैं साफ कर दें तो जाने ? नहीं तो प्रशासन पर अनदेखी, गैर जिम्मेदारी का आरोप लगाने वाले समाज अपने आईने में खुद का चेहरा देख लें। संसोलाव तलाब पर सफाई का काम कर प्रशासन ने तो अपना चेहरा उजला कर लिया है। तालाबों के मालिक समाज क्या अपना चेहरा उजला कर पाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो पुण्य का बड़ा काम होगा। पितृ भी तृप्त होंगे, प्रकृति और जीव जंतु भी। बेशाख में क्या सारे तालाब साफ हो जाएंगे ? ताकि बारिश का जितना भी हो पानी आ जाए । ताकि बीकानेर खुशहाल हो जाए।

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