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जयपुर.दो साल पहले राजस्थान में बड़ा सियासी संकट खड़ा हुआ था और सरकार गिरने तक की नौबत आ गई थी. उस वक्त सचिन पायलट अपने कुछ साथी विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे और सरकार पर संकट मंडराने लगा था.सरकार को 34 दिन होटलों में बिताने पड़े थे. उस सियासी भूचाल के अब दो साल पूरे हो चुके हैं. दो साल गुजरने के बावजूद गहलोत-पायलट खेमे के बीच की तल्खियां कम नहीं हुई है. बार-बार बयानों में यह मनमुटाव साफ देखने को भी मिलता है. ऊपरी तौर पर दावे सब कुछ ठीक होने के किए जाते हैं लेकिन हर बार इन दावों की कलई खुलकर सामने आ जाती है. गहलोत और पायलट खुद बार-बार एक-दूसरे पर तंज कसने से नहीं चूकते.

इस सियासी संकट के बाद पायलट कांग्रेस में तो बने रहे लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद उन्हें गंवाना पड़ा. अब दो साल बाद भी पायलट ना तो संगठन में ही कोई पद पा सके हैं और ना ही सत्ता में उनकी एंट्री हो पाई है. हालांकि उनके साथ जाकर मंत्री पद गंवाने वाले रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह फिर से गहलोत कैबिनेट में शामिल हो चुके हैं. सरकार द्वारा दावे किए जा रहे हैं कि अब सब कुछ ठीक चल रहा है लेकिन हकीकत सबको पता है.

कब क्या हुआ था?

12 जुलाई को सीएम गहलोत ने विधायकों के साथ बैठक की और 13 जुलाई को विधायक दल की बैठक बुलाई. 12 जुलाई को ही पायलट ने विधायक दल की बैठक में आने से इन्कार किया. पायलट खेमे की ओर से दावा किया गया है कि उनके साथ 30 विधायक हैं और सरकार अल्पमत में है. 13 जुलाई को मुख्यमंत्री निवास पर विधायक दल की बैठक हुई. इसी दिन विधायकों को दिल्ली रोड़ स्थित होटल में बाड़ाबंदी में शिफ्ट कर दिया गया. 14 जुलाई को सचिन पायलट को पीसीसी चीफ और डिप्टी सीएम पद से हटाया गया. इसी दिन सेवादल अध्यक्ष राकेश पारीक, यूथ कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश भाकर और एनएसयूआई अध्यक्ष अभिमन्यू पूनिया को हटाया. गोविन्द सिंह डोटासरा को पीसीसी चीफ, हेमसिंह शेखावत को सेवादल अध्यक्ष, गणेश घोघरा को यूथ कांग्रेस अध्यक्ष बनाया. 15 जुलाई को बगावत करने वाले सभी विधायकों को स्पीकर की ओर से नोटिस जारी किए गए.

16 जुलाई को सचिन पायलट खेमे ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 22 जुलाई को सीएम गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत के घर ईडी की कार्रवाई हुई. 24 जुलाई को विधानसभा सत्र नहीं बुलाए जाने के विरोध में विधायक राजभवन पहुंचे और नारेबाजी की. 26 जुलाई को बसपा से कांग्रेस में शामिल 6 विधायकों का मामला कोर्ट पहुंचा. 31 जुलाई को गहलोत समर्थक विधायकों को जैसलमेर के होटल में शिफ्ट किया गया. 10 अगस्त को प्रियंका गांधी से सचिन पायलट की मुलाकात हुई. एआईसीसी से सभी विधायकों की तस्वीरें आई. 11 अगस्त को पायलट के साथ सभी विधायक जयपुर लौटे. 14 अगस्त को विधानसभा में सरकार ने विश्वास प्रस्ताव में बहुमत हासिल किया.

अभी तक हरे हैं घाव

साल 2020 के घाव अभी तक भरे नहीं हैं. बार-बार ये घाव कुरेदे जाते रहे हैं. आज भी गहलोत-पायलट के बीच कुर्सी की लड़ाई जारी है. पायलट अपने साथ गए विधायकों को मंत्रीमंडल और राजनीतिक नियुक्तियों में पद दिलवाने में कामयाब रहे लेकिन उनके खुद का हाथ अभी तक खाली हैं. पिछले दिनों राहुल गांधी ने पायलट के धैर्य की सराहना की थी लेकिन सियासी हलकों में चर्चा यही है कि आखिर इस धैर्य का सिला क्या मिलेगा? उधर इस दो साल के दौरान गहलोत परेशान भले ही रहे हों लेकिन सत्ता पर पकड़ बनाए रखने में कामयाब रहे. इसके साथ ही गहलोत सचिन पायलट खेमे के कई विधायकों को भी अपने करीब लाने में कामयाब रहे हैं. अब पार्टी की नजर मिशन 2023 पर है और आगामी दिनों में कुछ बड़े उलटफेर संभव है.

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