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सोनिया-प्रियंका के फार्मूले से अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों खुश। अजय माकन की भागदौड़ भी काम आई।बसपा वाले और निर्दलीय विधायकों को अब संसदीय सचिव व राजनीतिक नियुक्तियों में एडजस्ट किया जाएगा। सुभाष गर्ग के अरमान भी धरे रह गए।मंत्रियों के शपथ ग्रहण से पहले सचिन पायलट ने कहा- राजस्थान में अब सब कुछ ठीक है। इसी फार्मूले से राजनीतिक नियुक्तियां भी होंगी।

एक वर्ष के जद्दोजहद के बाद आखिरकार 21 नवंबर को राजस्थान में कांग्रेस मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल हो ही गया। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी ने जो फार्मूला तय किया, उससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट दोनों खुश हैं। फेरबदल में जहां गहलोत ने सरकार बचाने वाले विधायकों के हितों का ख्याल रखा। वहीं पायलट उन विधायकों को मंत्री बनवाने में सफल रहे जिनका मंत्री पद गत वर्ष जुलाई में छीन लिया गया था। हालांकि अब पायलट गुटबाजी से इकार कर रहे हैं, लेकिन गत वर्ष जुलाई में कांग्रेस के जो 18 विधायक दिल्ली गए उनमें से तीन को मंत्री पद मिल गया है। ये विधायक हैं बृजेन्द्र ओला, हेमाराम चौधरी तथा मुरारी लाल मीणा। इसी प्रकार विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को दोबारा से मंत्री बना दिया गया है। यानी जो 18 विधायक पायलट के नेतृत्व में एक माह तक दिल्ली में रहे उनमें से पांच अब अशोक गहलोत के मंत्रिमंडल में शामिल हैं। हालांकि गहलोत ने विधायकों के दिल्ली जाने को भाजपा का षडय़ंत्र बताया है। सोनिया-प्रियंका के फार्मूले में पायलट के मान सम्मान का पूरा ख्याल रखा गया है। इसी प्रकार सीएम गहलोत को भी नए मंत्रियों के चयन में पूरी छूट दी गई है। गहलोत के किसी भी मंत्री को ड्रॉप नहीं किया गया है। गहलोत ने जिसे चाहा उसे मंत्री बनाया। जिन्हें मंत्री नहीं बनाया उन विधायकों को अब संसदीय सचिव और मुख्यमंत्री का सलाहकार बनाकर संतुष्ट किया जाएगा। भले ही फेरबदल को लेकर गहलोत और पायलट के बीच कोई विचार विमर्श नहीं हुआ हो, लेकिन प्रभारी महासचिव अजय माकन ने जो तालमेल बैठाया, उससे अब गहलोत व पायलट दोनों ही संतुष्ट नजर आ रहे हैं। गहलोत और पायलट के बीच तालमेल बैठाने में माकन को कई मौकों पर अपमानित भी होना पड़ा। लेकिन माकन ने धैर्य रखा। पायलट का साथ देेने के बाद भी माकन ने गहलोत को नाराज नहीं होने दिया। हो सकता है कि इस मेहनत की एवज में माकन को राजस्थान से राज्यसभा में भेज दिया जाए। राजस्थान की तीन सीटों पर 6 माह बाद चुनाव होने हैं। मंत्रिमंडल फेरबदल के मौके पर पायलट ने जो सकारात्मक रुख अपनाया है उससे प्रतीत है कि अब गहलोत के नेतृत्व को कोई चुनौती नहीं है। अब यदि कोई खींचतान होगी तो वह 2023 के विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे के समय देखने को मिलेगी। सीएम गहलोत ने जहां प्रताप सिंह खाचरियावास, शांति धारीवाल, लालचंद कटारिया, बीडी कल्ला, अशोक चांदना, राजेंद्र सिंह यादव, परसादी लाल मीणा, साले मोहम्मद, सुखराम विश्नोई, प्रमोद जैन, भंवर सिंह भाटी, सुभाष गर्ग, उदयलाल आंजना, अर्जुन सिंह बामनिया का मंत्री पद बरकरार रखा। वहीं राज्यमंत्री ममता भूपेश, भजनलाल जाटव और टीकाराम जूली को कैबिनेट मंत्री के पद पर पदोन्नत कर दिया। इतना ही नहीं महेश जोशी, रामलाल जाट, महेंद्रजीत सिंह मालवीय, गोविंद राम मेघवाल, शकुंतला रावत को भी कैबिनेट मंत्री बनवाने में सफल रहे। बसपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले विधायक राजेंद्र गुढ़ा और कांग्रेसी विधायक जाहिदा को भी राज्यमंत्री बनाया गया है। बसपा के छह विधायकों में से सिर्फ एक ही विधायक ही मंत्री बन पाया है, क्योंकि बदली हुई परिस्थितियों में कांग्रेस को अब सरकार चलाने के लिए बाहरी विधायकों की जरूरत नहीं है। यही वजह है कि सरकार को समर्थन देने वाले 13 निर्दलीय विधायकों में से भी किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है। निर्दलीय विधायकों के नेता माने जाने वाले संयम लोढ़ा भी मंत्री नहीं बन पाए हैं। इससे निर्दलीय विधायकों में नाराजगी भी है। लेकिन निर्दलीय विधायक समझते हैं कि कांग्रेस को अब उनकी जरूरत नहीं है। जब पायलट गुट ही नहीं रहा तो फिर निर्दलीयों की कोई आवश्यकता नहीं है। बसपा वाले विधायक भी कांग्रेस में शामिल होकर अपनी ताकत को खत्म कर चुके हैं। अब 200 में से कांग्रेस के 108 विधायक हैं। विधानसभा में बहुमत के लिए 101 विधायकों की जरूरत है। मंत्रिमंडल फेरबदल में तकनीकी शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष गर्ग के अरमानों पर भी पानी फिर गया है। गर्ग को उम्मीद थी कि उन्हें कैबिनेट मंत्री के पद पर पदोन्नत किया जाएगा। गर्ग राष्ट्रीय लोक दल के विधायक हैं, लेकिन उन्हें सीएम गहलोत के निकट माना जाता है।
अब सब कुछ ठीक है-पायलट:
21 नवंबर को राजस्थान में गहलोत मंत्रिमंडल में नए मंत्रियों की शपथ से पहले पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। पायलट ने स्पष्ट कहा कि अब राजस्थान में कोई गुटबाजी नहीं है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने समस्याओं के समाधान के लिए जो कमेटी बनाई थी, उसी कमेटी के निर्णयों के अनुरूप के ही मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ है। अब सभी वर्गों को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व मिल गया है। इसमें प्रदेश महासचिव अजय माकन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की महत्वपूर्ण भूमिका है। पायलट ने मीडिया से आग्रह किया कि अब कांग्रेस में गुटबाजी होने का उल्लेख नहीं करें। हमने जिस संयुक्त नेतृत्व से 2018 का चुनाव लड़कर कांग्रेस को 100 सीटे दिलवाई थी, उसी संयुक्त नेतृत्व से 2023 का विधानसभा का चुनाव भी लड़ा जाएगा। हम सबका प्रयास होगा कि राजस्थान में दोबारा से कांग्रेस की सरकार बनवाए। एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की जीत की परंपरा को इस बार तोड़ दिया जाएगा। पायलट ने कहा कि नए मंत्रियों के विभागों की प्रक्रिया भी पूरी हो गई है। मंत्रियों के विभागों के बारे में जल्द पता चल जाएगा। जिस नीति को लेकर मंत्रिमंडल का फेरबदल हुआ, उसी नीति के अनुरूप ही प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियों भी होंगी। पायलट ने कहा कि अभी मुख्यमंत्री मंत्री के सलाहकार भी नियुक्त किए जाने हैं। हम सब का प्रयास है कि कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं को सम्मान मिले। जो निर्दलीय विधायक समर्थन दे रहे हैं उनका भी ख्याल रखा जाएगा।
गहलोत विरोधी विधायक नहीं बने मंत्री:
सचिन पायलट भले ही मौजूदा फेरबदल से संतुष्ट हो, लेकिन सचिन पायलट का झंडा बुलंद करने और सीएम गहलोत के खिलाफ बयान देने वाले कांग्रेसी विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं है। पायलट समर्थक विधायक इंद्र राज सिंह, मुकेश भाकर, वेद प्रकाश सोलंकी, हरीश मीणा, जीतेंद्र सिंह शेखावत, पीआर मीणा ने समय समय पर गहलोत सरकार के काम काज को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियां की। ऐसे किसी भी विधायक को मंत्री पद नहीं मिला है।

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