बीकानेर,राजस्थान के इकलौते आवासीय खेल विद्यालय सादुल स्पोर्ट्स स्कूल की दुर्दशा के खिलाफ चल रही भूख हड़ताल ने पांचवें दिन में प्रवेश कर लिया है। शिक्षा विभाग की अनदेखी से खिलाड़ियों के सपने टूट रहे हैं, और उनकी आवाज़ को बार-बार दबाया जा रहा है। इस गंभीर मुद्दे को उजागर करने के लिए क्रीड़ा भारती के नेतृत्व में यह आंदोलन शुरू हुआ है।
“खेल का मंदिर या विभाग की लापरवाही का शिकार?”
दानवीर सिंह भाटी ने बताया की 18 नवंबर को शुरू हुए इस ऐतिहासिक आंदोलन (आमरण अनशन) ने सादुल स्पोर्ट्स स्कूल की बदहाल स्थिति को सबके सामने ला दिया है। पिछले 17 वर्षों से डाइट मनी ₹100 पर अटकी हुई है, जबकि मूलभूत सुविधाओं की हालत चिंताजनक है। हॉस्टल में गर्म पानी की व्यवस्था नहीं, प्रशिक्षकों के पद खाली, खेल उपकरणों के लिए बजट बेहद कम, और बच्चों को भोजन तक चपरासी बनाकर परोसते हैं।
पिछले 5 दिन से भूख हड़ताल पे बैठे पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी दानवीर सिंह भाटी व भैरूरतन ओझा ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, “सादुल स्पोर्ट्स स्कूल जैसा ऐतिहासिक संस्थान शिक्षा विभाग की अनदेखी और भयंकर भ्रष्टाचार का शिकार हो रहा है। यह केवल इस स्कूल का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे राज्य के खिलाड़ियों के भविष्य का सवाल है। इसलिये अब और चुप नहीं रहा जा सकता।”
मुख्य मांगे:
1. डाइट मनी को ₹100 से बढ़ाकर ₹300 किया जाए।
2. प्रशिक्षक और सहायक प्रशिक्षकों की तत्काल नियुक्ति।
3. हॉस्टल में कूलर और गीजर जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
4. खेल उपकरणों का बजट ₹2 लाख से बढ़ाकर ₹10 लाख किया जाए।
5. डिस्पेंसरी और स्विमिंग पूल की सुविधाएं बहाल की जाएं।
“अब और इंतजार नहीं!”
आंदोलन के पांचवें दिन दानवीर सिंह भाटी ने चेतावनी दी, “यदि शिक्षा विभाग ने अब भी हमारी मांगों को नहीं माना, तो यह आंदोलन पूरे राजस्थान में फैलाया जाएगा।”
इस बीच, लगभग 12 जिलों में खिलाड़ियों ने मुख्यमंत्री के नाम अपने अपने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए मांगों की जल्द से जल्द पूर्ति की अपील की। खिलाड़ियों का समर्थन बढ़ता जा रहा है, और आंदोलन को व्यापक रूप देने की तैयारी है। एबीवीपी बीकानेर ने भी आंदोलनकारियों का साथ देते हुए शिक्षा विभाग को चेतावनी दी है कि खिलाड़ियों की मांगों की अनदेखी नहीं की जा सकती।, एनआईएस खेल प्रशिक्षक संघ ने भी अपना समर्थन दिया
राजस्थान के खिलाड़ियों और उनके भविष्य के लिए इस लड़ाई ने राज्यभर के लोगों का ध्यान खींचा है। आंदोलन की गूंज अब हर जिले से सुनाई दे रही है, और यह साबित करता है कि यह केवल एक स्कूल का संघर्ष नहीं, बल्कि राजस्थान के भविष्य के खेल और प्रतिभाओं का सवाल है।